✽.•♥•.तनक हरि
चितवौ जी मोरी ओर।.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.हम चितवत
तुम चितवत नाहीं.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.मन के बड़े
कठोर।.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.मेरे आसा
चितनि तुम्हरी.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.और न दूजी
ठौर।.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.तुमसे हमकूँ
एक हो जी .•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.हम-सी लाख
करोर॥.•◥♥◣✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.कब की ठाड़ी
अरज करत हूँ.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.अरज करत
भै भोर।.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.मीरा के
प्रभु हरि अबिनासी .•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
✽.•♥•.देस्यूँ प्राण अकोर॥.•♥•.✽
◥♥◣✽.•♥•.॥श्री कृष्ण: शरणम् मम:॥.•♥•.✽◥♥◣
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