▒▒▒.⋰ ♥║⋱.•♥•.षष्ठं कात्यायनी च,•♥•.⋰║♥ ▒▒▒
या देवी सर्व भूतेषु
दया रूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै,नमस्तस्यै,नमो नमः ॥
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माँ दुर्गा के छठे रूप का नाम कात्यायनी है। कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
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कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।
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ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।
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माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
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या देवी सर्वभूतेषु माँ कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और कात्यायनी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ। हे माँ, मुझे दुश्मनों का संहार करने की शक्ति प्रदान कर।
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▒▒▒▒▒▒▒▒▒▒▒▒♥║.•♥•.मन्त्र•
ॐ कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।
नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥
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चन्द्रहासोज्जवलकरा शार्दूलावरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्यादेवी दानवद्यातिनी।।
▒▒▒▒▒▒▒▒♥║.•♥•.ध्यान•♥•.║♥
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥
▒▒▒▒▒▒▒▒▒♥║.•♥•.स्तोत्र पाठ•♥•.║♥▒▒▒▒▒▒▒▒▒
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोस्तुते॥
विश्वकर्ती,विश्वभर्ती,विश्
कां बीजा, कां जपानंदकां बीज जप तोषिते।
कां कां बीज जपदासक्ताकां कां सन्तुता॥
कांकारहर्षिणीकां धनदाधनमासना।
कां बीज जपकारिणीकां बीज तप मानसा॥
कां कारिणी कां मूत्रपूजिताकां बीज धारिणी।
कां कीं कूंकै क:ठ:छ:स्वाहारूपणी॥
▒▒▒▒▒▒▒▒▒▒ ♥║.•♥•.कवच.•♥•.║♥▒▒▒▒▒▒▒▒▒
कात्यायनौमुख पातुकां कां स्वाहास्वरूपणी।
ललाटेविजया पातुपातुमालिनी नित्य सुंदरी॥
कल्याणी हृदयंपातुजया भगमालिनी॥
आज के दिन साधक का मन आज्ञाचक्र में स्थित होता है। योगसाधना में आज्ञाचक्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित साधक कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व अर्पित कर देता है। पूर्ण आत्मदान करने से साधक को सहजरूप से माँ के दर्शन हो जाते हैं। माँ कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।
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माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
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नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भदायै नियता: प्रणता: स्मताम्।।
रौदायै नमो नित्यायै गौयैर् धात्रयै नमो नम:।
ज्योत्स्नायै चेन्दुरूपिण्यै सुखायै सततं नमो नम:।।
कल्याण्यै प्रणतां वृद्धयै सिद्धयै कुमोर् नमो नम:।
नैऋर्त्यै भूभृतां लक्ष्म्यै शर्वाण्यै ते नमो नम:।।
दुर्गार्य दुर्गपारार्य सारार्य सर्वकारिण्यै।
ख्यात्यै तथैव कृष्णायै धूम्रार्य सततं नम:।।
अतिसौम्यातिरौदार्य नतास्तस्यै नमो नम:।
नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै कृत्यै नमो नम:।।
या देवी सर्वभूतेषु विष्णुमायेति शब्दिता।
नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नम:।।
या देवी सर्वभूतेषु चेतनेत्याभिधीयते।
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता।
या देवी सर्वभूतेषु निदारूपेण संस्थिता।
या देवी सर्वभूतेषु क्षुधारूपेण संस्थिता।
या देवी सर्वभूतेषुच्छायारूपेण संस्थिता।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता :।
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⋰ ♥║⋱.•♥•..⋰ ♥║आरती ║♥⋱,•♥•.⋰║♥⋱
⋰ ♥║जै अम्बे जै जै कात्यायनी║♥⋱
⋰ ♥║जै जगदाता जग की महारानी║♥⋱
⋰ ♥║बैजनाथ स्थान तुम्हारा║♥⋱
⋰ ♥║वहां वरदाती नाम पुकारा║♥⋱
⋰ ♥║कई नाम है कई धाम है║♥⋱
⋰ ♥║यह स्थान भी तो सुखधाम है║♥⋱
⋰ ♥║हर मंदिर में जोत तुम्हारी║♥⋱
⋰ ♥║कहीं योगेश्वरी महिमा न्यारी║♥⋱
⋰ ♥║हर जगह उत्सव होते रहते║♥⋱
⋰ ♥║हर मंदिर में भक्त है कहते║♥⋱
⋰ ♥║कात्यायनी रक्षक काया की║♥⋱
⋰ ♥║ग्रन्थी काटे मोह माया की║♥⋱
⋰ ♥║झूठे मोह से छुङाने वाली║♥⋱
⋰ ♥║अपना नाम जपाने वाली║♥⋱
⋰ ♥║ब्रहस्पतिवार को पूजा करियों║♥⋱
⋰ ♥║ध्यान कात्यायनी का धरियों║♥⋱
⋰ ♥║हर संकट को दूर करेगी║♥⋱
⋰ ♥║भण्डारे भरपूर करेगी║♥⋱
⋰ ♥║जो भी मां को चमन पुकारें║♥⋱
⋰ ♥║कात्यायनी सब कष्ट निवारे║♥⋱
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.•♥•.⋰·║▒█.•♥•..श्री कृष्ण शरणम् ममः.•♥•.█▒║..⋰·.•♥•.
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बहुत सुंदर ...जय जय श्री राधे ...
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